प्रेगनेंसी के लिये प्लानिंग की जरुरत हैं और अगर आप डायबेटिक हैं तो आपको मेटिकुलोस प्लानिंग करनी चाहिये | ब्लड शुगर लेवल्स हाई होने से गर्भाधान (conception) के समय समस्या हो सकती हैं जिसके कारण प्रेगनेंसी में भी प्रॉब्लम होता हैं | मगर शुगर लेवल्स कंट्रोल में होने से कंसीव करने के समय समस्या नहीं होगी | अगर कोई महिला डायबिटिक हैं तो कन्सेप्शन से पहले परिस्थिती को कंट्रोल में लाने के लिये डॉक्टर की सलाह जरूर लेनी चाहिए | अगर आप ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल में कर सकते हैं तो कन्सेप्शन और प्रेगनेंसी दोनों में कोई परेशानी नहीं होगी।
प्री- कन्सेप्शन
पहले महिला और उनके पार्टनर को प्रेगनेंसी प्लानिंग के लिये दोनों का सहमत होना जरूरी हैं | अगर दोनों सहमत हैं तो बच्चे के जन्म के लिये अपने डॉक्टर से ब्लड शुगर लेवल्स चेक कीजिये | अगर आप ब्लड शुगर लेवल्स को कंट्रोल करने के लिये दवाइयां या हाइपोग्लाइसेमिक एजेंट ले रहे हैं तो कंसीव करने के लिये ये सुरक्षित है या नहीं अपने डॉक्टर से जरूर पूछिये | मेटाफोर्मिन दवाई प्रेगनेंसी के दौरान लेना सुरक्षित मानी जाती हैं | एंडोक्रोनोलॉजिस्ट आपके शरीर के परिस्थिती अनुसार आपको मेटफोर्मिन और इन्सुलिन या सिर्फ इन्सुलिन | कन्सेप्शन के दौरान कोई अन्य दवाई की सलाह नहीं देते हैं , ऐसा डॉ. सरवैया कहती हैं | इसके अलावा वजन कम करना, शुगर कम खाना, डायट मैनेजमेंट और स्मोकिंग , शराब पीना जैसी आदतें छोड़ देने की सलाह दी जाती हैं | अगर कोई और समस्या हैं जैसे दिल , किडनी और लीवर की समस्या हैं तो डायबिटीज की वजह से उसका भी उपचार मां बनने से पहले करना जरुरी हैं | प्रेगनेंसी की वजह से ये समस्याए बढ़ सकती हैं और पेट में पलते बच्चे के सेहत के लिये हानिकारक हो सकता हैं |
कंन्सेप्शन
आपका शुगर लेवल अगर नॉर्मल हो जाये, जैसे की 70 एम जी/डी एल (70 mg / dl) बिना कुछ खाये और 140 एम जी/डी एल (140 mg / dl) खाने के बाद तो फिर आपके डॉक्टर आपको कंन्सेप्शन के लिये हां कह सकते है । फर्टाइल पिरियड में सेक्स करने से आपके जल्दी प्रेगनेंट होने की संभावना बढ़ जाती है । अगर आपका शुगर लेवल कंट्रोल हो जाये तो फिर आप दो से तीन महिने में कंसिव कर सकते हैं, मगर इसके बाद आपका शुगर लेवल हाई होना नहीँ चाहिये ।
प्रेगनेंसी के दौरान
अगर आप प्रेगनेंट हो जाये तो आपको सावधान रहना होगा आपका शुगर लेवल बढ़ने से मां और बच्चा दोनों को खतरा हो सकता हैं । शुगर लेवल कम करने के लिये ये टीप्स जरुर आजमाये :
अपने डायट का ध्यान रखे
अगर आप डायबेटीक हैं, तो 'प्रेगनेंसी के दौरान दो लोगो का खाना चाहिये' इस मिथक को बिल्कुल फॉलो ना करे । इस समय ज्यादा कैलोरी फूड्स खाने से शुगर लेवल बढ़ सकता है जो आपके बच्चे के लिये हानिकारक और गर्भपात की भी संभावना बढ़ा सकता हैं । ऐसे समय संतुलित आहार करना जरुरी हैं और आपको ज्यादा खाने की इच्छा हो तो इसे कंट्रोल करने के लिये न्यूट्रिशनिस्ट की सलाह जरुर लिजिये । बच्चे का और गर्भ का विकास होने के लिये आपके खाने में सभी प्रकार का सेहतमंद आहार को शामिल कीजिये ।
दवाइयां सही समय पर लीजिये
बच्चे को जन्मपूर्व मां से दिये जानेवाले विटामिन्स और फॉलिक एसिड नियमित रूप से लिजिये । बच्चे को फॉलिक एसिड की कमी से न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट्स हो सकताे हैं । स्वस्थ्य बच्चे की जन्म के लिये प्रेगनेंट महिला को 400 एम जी (mg ) फॉलिक एसिड की सलाह दी जाती है ।
अपने टेस्ट बिना भूले करे
ब्लड शुगर को कंट्रोल में रखने के लिये अपना रुटीन ब्लड टेस्ट जरुर कीजिये । अगर ब्लड शुगर कंट्रोल नहीं कर पाये तो आपके बच्चे की सेहत पर असर पड़ता हैं और उसका वज़न बढ़ जाता हैं | प्रेगनेंसी के 13 हफ़्तों में बच्चे के शरीर के महत्वपूर्ण अंग तैयार हो जाते हैं, हाई शुगर की वजह से शरीर के अंग तैयार होने में समस्या हो सकती हैं | दूसरे तिमाही के दौरान ब्लड ग्लूकोज लेवल्स चेक करना मां के लिये जरुरी हैं | जहां मां को 50 या 70 एम जी ग्लूकोज़ दिया जाता हैं और दो घंटे बाद उसका रीडिंग लिया जाता हैं | अगर मां ब्लड शुगर कंट्रोल नहीं कर सकती तो बच्चे को भी नहीं हो पाता हैं | बच्चे के विकास लिये खतरा बन सकता हैं, ऐसा डॉ. सरवैया कहती हैं |
रोजाना एक्सरसाइज करे
रोजाना एक्सरसाइज करने से मतलब है आप कम से कम 15 या 30 मिनट तक चले, इससे ब्लड शुगर लेवल कंट्रोल में रहता हैं |
बुरी आदतें छोड़ दो
धूम्रपान और शराब पीने से शरीर में ज़हर बनता हैं जो प्लासेंटा से पार होकर बच्चे तक पहुंच जाता हैं | इस से बच्चे के शरीर का अंग बनने में समस्या होती हैं, हार्ट रेट कम होता हैं , ऑक्सीजन की कमी, मेन्टल रेटार्डेशन और भी बहुत कुछ समस्याएं हो सकती हैं | इसके बजाये बच्चे को इन सब से बचाने के लिये हेल्दी लाइफस्टाइल मेंटेन करें |
लेबर और डिलीवरी के दौरान
कुछ मामलों में अगर मां को डायबिटीज हैं तो पेट में पलनेवाला बच्चा का शरीर बड़ा हो सकता है या तो उसका सिर बड़ा हो सकता हैं | ऐसी स्थिति में जब मां का पेल्विस संकुचित होता हैं तब वैजाइनल बर्थ में परेशानी होती हैं | ऐसे समय में बच्चे का सिर बर्थ कैनाल में फंस सकता हैं या बर्थ के समय में शोल्डर डिटोसिए (shoulder dystocia) हो सकता हैं | ये परेशानियां ना हो इसलिए डॉक्टर सी सेक्शन की सलाह देते हैं ,
प्रेगनेंसी के दौरान डायबिटीज बच्चे और मां पर कैसे असर करता है-
बच्चे की सेहत के लिये : प्रेगनेंसी के शुरुवाती महीनों में हाई शुगर लेवल्स होने से शरीर के अंग के लिये नुकसान पंहुचा सकता हैं - दिल , किडनी , फेफड़े , दिमाग और बच्चा हेल्दी पैदा नहीं हो सकता हैं | हाई शुगर लेवल्स से गर्भपात , समय से पहले डिलीवरी , वजन बढ़ना, शरीर के अंग का पूरा विकास ना होना या जन्म पहले बच्चे का मर जाने जैसे हेल्थ प्रॉबल्म हो सकते हैं |
मां की सेहत के लिये : शुगर को कंट्रोल ना कर पाये मां को प्रीक्लैम्सिए (preeclampsia)हो सकता हैं जिसकी वजह से मां और बच्चा दोनों की जान के लिये खतरा हो सकता हैं | बच्चे को प्रीक्लैम्सिए से बचाने के लिये एक तरीका हैं बच्चे को जल्दी डिलीवर करना | फिर भी आपको बच्चे की डिलीवरी के लिये 37 हफ्तों तक इंतज़ार करना ही पड़ेगा |
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